के के पाठक के तुगलकी फरमान लोकसभा चुनाव में मोदी नीतीश के लिए खड़ी कर दी बहुत बड़ी मोसिबत , शिक्षा विभाग के आदेश से परेशान गुरु जी लोकसभा चुनाव में NDA का खेल खराब करने की तैयारी में जुटी
के के पाठक के तुगलकी फरमान लोकसभा चुनाव में मोदी नीतीश के लिए खड़ी कर दी बहुत बड़ी मोसिबत , शिक्षा विभाग के आदेश से परेशान गुरु जी लोकसभा चुनाव में NDA का खेल खराब करने की तैयारी में जुटी
बिहार के लोकसभा चुनावों में तमाम सियासी दल और राजनेता अपने प्रत्याशियों की जीत सुनिश्चित करने के लिए वोटरों को गोलबंद करने में लगे हैं. यहां तक कि राजनेता आम मतदाताओं के सामने यह सवाल भी छोड़ रहे हैं कि ‘जिसने आपको नौकरी दी आप वोट भी उसी को दें’.
लेकिन नौकरी का सवाल अब बिहार के शिक्षकों के लिए जी का जंजाल बना हुआ है. बिहार में बीपीएससी से चयनित लाखों शिक्षक हों या फिर नियोजित शिक्षक सबकी मुसीबत पिछले कई महीनों से शिक्षा विभाग का समय समय पर निकलने वाला सरकारी फरमान है. जैसे 16 मई से बिहार के सरकारी स्कूलों की टाइमिंग बदल गई. सुबह छह बजे स्कूल खुल गए. ऐसे में शिक्षक हों या छात्र सबके लिए सुबह छह बजे स्कूल पहुंचना एक चुनौती है.
अब शिक्षकों के लिए यह चुनौती भरा टास्क बना है तो इसका असर लोकसभा चुनावों पर भी पड़ सकता है. स्कूलों की टाइमिंग बदलने से शिक्षकों के बड़े वर्ग के नाराज होने की खबर है. बाकायदा कई शिक्षक नेता और संघ इस फैसले के खिलाफ अपनी आवाज उठा चुके हैं. पहले ही स्कूलों में शिक्षकों की छूट्टी में कटौती का भारी बवाल हो चूका है. विधानसभा और विधान परिषद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कथित आदेश के बाद भी शिक्षकों की कई मांगों पर शिक्षा विभाग ने अपना आदेश नहीं पलटा. यहां तक कि शिक्षकों के मुद्दे को लेकर कई दिनों तक सदन की कार्यवाही बाधित रही थी. बावजूद इसके शिक्षा विभाग ने शिक्षकों की एक नहीं सुनी.
कहा जा रहा है कि शिक्षकों का एक बड़ा वर्ग इससे नाराज है. वह लोकसभा चुनाव के दौरान इसे लेकर कई नेताओं का खेल भी खराब कर सकते हैं. सोशल मिडिया पर लगातार ऐसे पोस्ट की भरमार है जिसमें शिक्षकों से अपील की जा रही है कि वे मतदान के समय वोट से जवाब दें. यहां तक कि कुछ शिक्षकों ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर यह भी कहा वे नोटा पर वोट देंगे. वहीं कुछ शिक्षक सीधे सीधे एनडीए के खिलाफ वोट देने की बात करते दिखे. शिक्षकों का कहना है कि शिक्षा विभाग के कई फैसले मनमाने ढंग से लिए जा रहे हैं. यह केवल शिक्षकों के लिए परेशानी खड़े करने वाला रहा है. अगर ऐसा हुआ तो यह चुनाव में कई लोकसभा सीटों पर प्रमुख सियासी दलों का खेल खराब करने के लिए काफी है.
शिक्षकों के एक वर्ग में नाराजगी इसलिए भी है क्योंकि मतदान वाले दिन उन्हें प्रशिक्षण भर भेजा गया. उदहारण के तौर पर 13 मई को बिहार में पांच सीटों पर चुनाव था. लेकिन उसी दिन जिला कार्यक्रम पदाधिकारी प्राथमिक शिक्षा एवं शिक्षा अभियान ने वर्ग 1 से 5 तक के शिक्षकों को छह दिवसीय आवासीय प्रशिक्षण पर भेज दिया. शिक्षकों को 12 मई को ही रिपोर्टिंग करने कहा गया. इससे कई शिक्षक जो उन क्षेत्रों के मतदाता थे उन्हें 13 मई को वोट डालने से वंचित होना पड़ा.
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव अपनी चुनावी सभाओं में लगातार 17 महीने बनाम 17 साल का नारा दे रहे हैं. वे बता रहे हैं कि जब नीतीश कुमार के साथ 17 महीने राजद सरकार में रही और तेजस्वी ने उप मुख्यमंत्री का जिम्मा निभाया तभी बिहार में शिक्षकों की नौकरी का रास्ता साफ हुआ. इसलिए नौकरी देने वाले तेजस्वी यादव को मजबूत करें. हालाँकि जदयू ने पहले ही उनके दावों का खंडन किया है. जदयू ने कहा है कि वर्ष 2020 में ही नीतीश कैबिनेट ने शिक्षकों के नौकरी से जुड़े फैसले को लिया था. इसलिए इसका क्रेडिट तेजस्वी ना लें.